आजकल देश में असहिष्णुता पे खूब बातें हो रही है, किसी को देश अच्छा नहीं लग रहा तो कोई ईराक सीरिया का अखबार पढ़ भारत में डर रहा है, “रक्तपात” की बातें करने वालो को भी असहिष्णुता की चिंता हो रही है, पार्टी के नेशनल मीटिंग में बात पसंद न आने पर बाउंसर से पिटवाने वाले भी मानते है की देश असहिष्णु हो रहा है, जानवरों का चारा खाने वाले भी इस चिंता में आगे है, धार्मिक आधार में विशेष सुविधावों का लाभ लेने वालो की असहिष्णुता पे चिंतित होना भी जायज है, इन सब के बीच भी यदि सबसे शांत और सौम्य है तो वो है एक अच्छा पाठक, वो आज के दौर में सबसे जादा सहिष्णु है, चुप है, उसे कोई शिकायत नहीं उसके स्तर का मटेरियल नहीं मिल रहा. आज के माहौल में अच्छा पढना और सुनना गायब है, गायब यूँ है की अभाव है, और जब अच्छे मटेरियल नहीं, अच्छे वक्ता नहीं तो ख़ाक अच्छा पढेंगे या सुनेंगे ?
अखबार उठाओ तो गाय को लात क्यों मारी से ले के “स्पेशल तेल” तक का विज्ञापन आम बात है, देश में कितनी फर्जी लोग है या उनकी फर्जी कम्पनियों का उदय है ये भी पता लगता है जब १०-२० की संख्या में उनके बारे नोटिस पढने को मिलता है, की देखो ये दिवालिया है, फर्जी है, उनके पास मत जाना, और जो गए वो निनांत आपिया थे, कम्पनी ने उनको आपिया बना दिया. युगल प्रेमी कितने परेशान है, और होटल वाला कितना असहिष्णु भी अखबारों की हेड लाइन होती है, या तो शादीशुदा न होने पे कमरा देने की असमर्थता व्यक्त करने पर प्रेमी युगल असहिष्णु होक उस पर टूट पड़ने की खबर होती है, या मनेजर स्वयं “कैमरा सहित रूम” दे के असहिष्णुता का परिचय दने की. लड़की के पड़ोस के लौंडे के साथ फरारी से ले के, बाबु, फूफा, बुआ, दीदी की अंत्येष्टि तक की खबरे छाप जैसे भगवान् को नोटिस भिजवाया जा रहा हो, बाबू जी मरे हो तो उनकी फोटो थोड़ी बड़ी रखी जाती है, आखिर उनके बाद तो अब सब उनके छपवाने वाले का ही है. मसाज करके बोडी मस्त रखे टाइप का चिंतन जानकारी पते के साथ लिखी होती, अखबार ये भी बताता है कुछ लोग इस देश में महा कुंठित है या खलिहर-अलहदी आदि टाइप के लोगो के लिए भी अखबार में विशेष स्थान है, तमाम नंबर होते है “फोन घुमाए, चटपटी बाते करें”.
सम्पादकीय कालम में आजकल निम्बू से मुहाए कैसे मिटाए की जानकारी होती है, ऑनलाइन मिडिया और अखबारों में सेक्स पावर कैसे बढाए या कहाँ किस अवस्था में करे की भरपूर जानकारी होती है, या कौन सी अभिनेत्री किसके साथ पकड़ी गयी की विस्तृत और प्रमाणिक जानकारी होती है. किताबो में मस्त राम, और सचित्र किताबे नौजवान पीढ़ी की पहली पसंद और सुलभ है, जिसके सहारे वो काफी कल्पना शील हो जाता है और वैसलीन के डब्बे तक को देख उसके मस्तिस्क में क्रांतिकारी विचार कौंध जाते है, लेकिन उनके घर में साहित्य नदारद, हो भी न क्यों? साहित्य और साहित्यकार तक ऐसे की उनके या उनके लिखे के बारे में जनता को पता नहीं जब तक वो असहिष्णुता पर अपना अवार्ड नहीं लौटाते, ऐसे माहौल में “५० रंगीन चित्रों सहित” किताबे मजबूती से मार्केट में पैर जमा रही है. पत्र पत्रिका को उठावो तो आप इस जुल्मी दुनिया में कितने कमजोर है इसका एहसास आपको होता है, और इसका आपके रिश्ते पे क्या प्रभाव पड़ सकता है बखूबी समझया जाता है, मजबूत होने के लिए पता भी लिखा होता है, आपका नाम पता गुप्त रखने की गारंटी के साथ.
इतने जुल्म सहने के बाद भी एक अच्छा पाठक कश्मीरी पंडितों की तरह सहनशील है, चुप है, उसका दर्द बाटने वाले न कोई नेता है न ही धार्मिक संघठन वो बस मेरी तरह अपना दर्द लिख देता है.
कमल कुमार सिंह