वोट बैंक बनाम इंसान

जानेवालों ज़रा मुड़ के देखो मुझे
एक इंसान हूँ, मैं तुम्हारी तरह.
आज मुझे लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का ये गाना याद आ रहा है. फिल्म दोस्ती में दो अपंग थे समाज से अपील करते फिरते थे, और भीख मांगते थे, कोई देता कोई न देता, चने खा के सो रहते और वो भी कभी कभी कोई छीन जाता.
वहां भी समाज था अपंग लोग अंग वालों से अपील कर रहे थे, यहाँ भी वही समाज है, लेकिन यहाँ कोई शारीरिक तौर पर अपंग नहीं लेकिन जहनी तौर पर जरुर हिन्दू समाज जरुर है. और अपंग करने वाले कौन है? निश्चित ही इसमें मिडिया और उसके बाद नेतावों का एक बड़ा हाथ है, कैसे? नीचे कुछ केस दे रहा हु, दोनों अलग अलग पक्ष के :-

केस स्टडी १.१ : दिल्ली दामिनी काण्ड :
एक लड़की का चलते बस में दुर्दांत रेप हुआ सके नाम बताये गए सिवाय एक के, यही नहीं उस समय रेप पे हल्ला मचाने वाले नेता बाद में मुख्यमंत्री बने और और उस मुस्लिम बलात्कारी को सिलाई मशीन गिफ्ट की. नया जीवन जीने के लिए.
केस स्टडी १.२ ||: अखलाख काण्ड :
एक अफवाह पे एक दुर्दांत भीड़ एक इंसान को क़त्ल कर देती है, नतीजा उसके फैमिली को ४० लाख, फ़्लैट से नवाजा जाता है.

केस स्टडी २.१ : घोडा टांग काण्ड :
जी हाँ, इसे काण्ड का ही नाम देंगे, साल में कई बार पारंपरिक रूप से बकरों के गर्दन रेतने वालो पर चूं न करने वाली मिडिया एक घोड़े की टांग पे इतना शोर मचाती है जैसे ISIS वालो ने हमला कर दिया हो जो बाद में झूठा निकला और झूठ फैलाने वाले पत्रकार मिडिया ने माफ़ी तक न मांगी. कारन यहाँ तथाकथित घोड़े की टांग तोड़ने वाले का नाम कोई हिन्दू था जो बाद में झूठ निकला.

केस स्टडी २.२ : डा नारंग मर्डर :
देश भर हुए हत्यावो की बात छोड़ देते है, छोड़ देते है प्रशांत पुजारी की हत्या जिसपे मिडिया चूं तक नहीं की. आईये डा नारंग की ही बात कर ले.
दुर्दांत भीड़ दवारा संघठित ढंग से योजना बना कर एक डा की पोश एरिया में हत्या कर दी जाती है, और मिडिया का रुख की कमुनल रूप न दें, ध्यान रहे वही मिडिया अपील कर रही जिसने अखलाख की हत्या पर पुरे देश के हिन्दुवों को हत्यारा घोषित कर दिया था, पूरी दुनिया में छवि बिगाड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. डा नारंग हिन्दू थे, कोई मिलने वाला नहीं आया. न केजरीवाल न राहुल. एक बार मान ले की सभी हत्यारे हिन्दू थे, सांप्रदायिक रंग के बिना भी बात करें तो क्या कारन है की दादरी से हैदराबाद तक पीछे ग्रीस लगा कर सरपट जाने वाले केजरीवाल, राहुल यहाँ का रास्ता भूल गए ? झुग्गी झोपड़ी हटाने के समय पहुचने वाले रविश, बरखा, राजदीप और अंजुम चुप है…कोई ग्राउंड जीरो नहीं जा रहे ? बता सिर्फ ये रहे की साम्प्रदायिक नहीं है. मामला साम्प्रदायिक न होना क्या इस बात का लाइसेंस देता ही की डा नारंग के यहाँ कोई न जाए ? डा नारंग की बात कोई नहीं कर रहा. क्या डा नारंग की जान घोड़े की कपोल कल्पित टूटी टांग से भी कम है ? वो सिर्फ इसलिए की मरने वाला यहाँ हिन्दू है, यहाँ आने से भाई चारा नहीं बढेगा, साम्प्रदायिकता बढ़ेगी, इनकी हरकतों और सोंच से तो यही लगता है. दादरी में पहुचने वाले केजरीवाल कहते है की नारंग का परिवार अभी दुखी है तो क्या अखलाख के परिवार ने उन्हें डिनर पर ख़ुशी ख़ुशी बुलाया था ? की आईये जी, अखलाख जी मर गए, आईये ..कुछ लेंगे ? चाय पानी, दारु सोडा? या मफलर?

मिडिया का ये रुख क्यों हैं ?? :
अरब देशो से इन मीडियाई घरानों से पैसा आता है या नहीं मै इस पर बात नहीं करूँगा लेकिन ये सत्य है की इनका एक एजेंडा इन ऊपर के चार उदाहरानो से समझा जा सकता है. अन्यथा मरने वाला या मारने वाला मुसलमान हो तो हर तरह से बारिश, पैरवी, और मरने वाला या मारने वाला तो छोडिये सिर्फ कपोल कल्पित टांग तोड़ने वाला हिन्दू हो तो दुर्गति होती है. यही मिडिया के लोग सोशल मिडिया के लोगो को जेल में बुक अफवाह फैलाने के केस में बुक करने की पैरवी करते है जो खुद अफवाहों के मसीहा है. यही पैमाना है तो अफजल प्रेमी मिडिया गैंग के ९०% लोग जेल में होंगे.
दूसरा एक लेकिन बहुत बड़ा कारन ये भी है की हिन्दुवों का संघठित न होना, हिन्दुवों में कुछ दलितांध और स्वार्थी लोग नारंग में दलित सवर्ण मुद्दा ढूढ़ रहे. हिन्दू संघठित नहीं है. वो तो हर शुक्रवार आँ आँ आँ करने माइक पे सबको बुला लेते है, लेकिन हिन्दू हफ्ते में क्या तो सालो में कभी इकठ्ठा नहीं होता. इन अफजल प्रेमी मिडिया गैंग को शायद RSS इसीलिए बुरा लगता है की कुछ मुठ्ठी भर ही सही लेकिन RSS सुबह सबको अपने यहाँ संघठित करता है, खेल कूद करता है, एक होने को कहता है.
हिंदुवो, अभी भी समय है, एक हो, नहीं तो ४० रूपये तक नसीब न होंगे, मारे जावोगे वो अलग, घर में घुस के, फिर ये तुम्हारी मौत तक पर बहस न करने की अपील करेंगे. उनका क्या ? उम्रदराज है तो ४० लाख रुपया, जुवेनाईल है तो सिलाई मशीन का गिफ्ट तो है ही, और तुम गाते रहना,
“जानेवालों ज़रा मुड़ के देखो मुझे
एक इंसान हूँ, मैं तुम्हारी तरह.”

सादर
कमल कुमार सिंह

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