पुलिस

पुलिस एक तिपाया प्राणी होता है, तिपाया यूँ की खड़े होने के लिए अपने दो टांगो के अवाला वो अपने मल्टीपर्पज डंडे का इस्तमाल भी करता है, जिसका एक सिरा जमींन पे और दूसरा सिरा शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है. एक हाथ कमर पे और एक हाथ से डंडा पकड़ उसे पावं के समकक्ष जमीन पे टिकाते हुए बोहनी ढूढता भी पाया जाता है, बोहनी हो जाने पे दोनों हाथो को खैनी रगड़ने के लिए आजाद रखने के लिए (JNU वाली आजादी नहीं) डंडे को कुर्सी बना तशरीफ़ भी टिका लेता है बशर्ते डंडा नुकीला न हो.

पुलिस वही प्राणी है जो बकौल केजरीवाल, उनकी पार्टी की दुश्मन है जिसको केजरीवाल प्यार और आदरपूर्वक ठुल्ला भी कहते है, पुलिस भी उन्हें गाहे बगाहे ठेलती रहती है. उस पर काफी दबाव होता है, हो भी क्यों न? उसके हाथमें सुरक्षा जो होती है, कुछ लोगो का मानना है की उसके हाथो में खैनी होती है जो अक्सर रगड़ता है, लेकिन मेरा मानना है की वो उसे खैनी नहीं बल्कि देश का दुश्मन मान रगड़ता है, चबाता है, उसे उर्जा मिलती है, जिसे फिर वो थूक कर अपराधियों की माँ बहन करता है, अपराधी? जी हाँ अपराधी, मसलन लालबत्ती तोड़ कर बिना रसीद शुल्क दिए भागा हुआ लौंडा, पार्क का चक्कर लगाते समय झाडी के किसी कोने में बैठे देश के सम्स्यावों पे चिंतन मनन करते युगल में से वो लौंडा यदि उसके सीनियर का निकल आये और उनका १००-५० का हक़ मार जाए, खोमचे वाला जो रोजाड़ी देने में आनाकानी करते है. कायदे से देखा जाए तो पुलिस कायदे से ड्यूटी करता है यदि उसे उगाही, नेता के बंगले पे तैनाती, ठेले खोमचे वाले से हफ्ता वसूलने से फुर्सत मिले तो.आमतौर पे इस तरह का पुलिस प्राणी सुखी माना जाता है, जो एक्स्ट्रा करिकुलर द्वारा आपनी आमदनी बढ़ा देश का जीडीपी बढाने में योगदान देता है.

दबंग वाले चुलबुल पांडे अपवाद को छोड़ दें तो किसी किसी प्रदेश में पुलिस निरीह प्राणी माना जाता है मसलन बालात्कार, हत्या, आगजनी, दंगा आदि सामाजिक मौको पे यदि सामाजिक कार्यकर्ता सत्ताधारी पार्टी का हो, न भी हो तो आलस उसे दिन हिन् बना देती है. आगजनी हो या दंगा हो या हरियाणा के जाटों की तर्ज पर सामूहिक बालात्कार हो, वो हर प्रकार की सामाजिक सम्स्यावों में भी मुस्कराता रहता है और “भाड़ में जाएँ भैन्चो” मन्त्र का मनन करता है. ये मन्त्र उन कारपोरेट कम्पनी के कर्मचारियों को भी सिखाया जाना चाहिए जो अनावश्यक दबाव ले तनाव में रहते है. यह दीन प्राणी अतिदीन और भी हो जाता है जब किसी कारण वश उसकी ड्यूटी पुलिस लाइन में लगा दी जाती है जहान उसकी होबी और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी पे रोक लग जाती है. कायदे से आपकी सेटिंग तो पुलिस यारों का यार है. “ईमान से यारी” की शपथ खाने वाला सेटिंग होने पर “यारी है ईमान मेरा यार” तर्जुमा छेड़ता है, समय से यारी नहीं पहुचती तो पुनः ईमान से यारी कर मल्टीपर्पज लठ्ठ को तेल पिला यार को ठेल देता है.

पुलिस धार्मिक भी होता है, उसे अधिकारी चालीसा, नेता श्लोक, मंत्री स्तुति जबानी याद होते है, स्टेज वाईज समय समय पर सारे धार्मिक कर्मकांड भी करता रहता है, कब अधिकारी के कुत्ते को खुद उसी प्रकार का बन उसे बहलाना हा, कब उनके बीवी की साडी पिको कराना है, मौका मिलने पर अधिकारी, नेता तथा मंत्री के संडास साफ़ करने को अपना सौभाग्य मानता है. अपनी स्थिति यथावत बनाये रखने के हर कर्तव्यों से परचित होता है, फिर भी जब किन्ही मौको पे जब ये धार्मिक क्रियाकलाप फेल हो जाते है तो घर पे बीवी तो है ही, उसके साथ अपना तनाव अपने तरीके से बांटता है.

नोट : उपरोक्त व्यंग, व्यंग मात्र है, किसी भी जीवित या मृत पुलिस वाले से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है, मेरे मित्र लिस्ट में जो भी पुलिस अधिकारी उनसे तो बिलकुल भी नहीं है, वो मेरे व्यंग की जद में नहीं आते (खुद का सर भी तो बचाना है)

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