पुरुष, कुछ लोग कहते हैं कि इस शब्द कि उत्पत्ति पौरुष शब्द से हुई अर्थात शक्तिशाली. लेकिन एन डी तिवारी जैसे कुछ अपवाद पुरुषों को छोड़ कर यदि दृष्टिपात किया जाये, तो क्या सच में पुरुष शक्तिशाली है ???
पुरुष, अपना बचपन परिवार के आशाओ का बोझ ढोता हुआ बस इसी सोच में निकाल देता है कि मैट्रिक पास कर पिता जी को बता देगा उनके तिवारी दोस्त के पुत्र से वह किसी भी तरह कम नहीं है. कभी बड़ी बहन कि अनावश्यक डाट झेलता बालक चुपके से अपनी माँ के पास उलाहना ले के जाता है तो वहाँ भी शरण नहीं मिलती, “अरे ये है ही कितने दिन यहाँ कुछ दिन में ब्याह ससुराल चली जायेगी ” सुन मन ही मन उसका दिल रो पड़ता है.
जब पुरुष किशोरावस्था मे प्रवेश करता है, तो याँ भी उसे नहीं बक्शा जाता. बिचारा बिना खाए पिए सारे दिन कालेज के गेट पर दिहाड़ी मजदूरों के भाँती खड़े हो बस एक नजर कि आस मे कई गिलास जूस पी जाता है लेकिन किसी को भी इन पे दया नहीं आती, यहाँ भी उसे किशोरियों द्वारा उपेक्षित किया जाता है, और जो कोई एक आध इस भागरथ प्रयास मे सफल हो गया तो फिर से शुरू होता है वही शोषण का अनवरत सिलसिला, हर बार का बिल, दिल के नाम पे किशोरियाँ तब तक भरवाती है जब तक वो उससे जोंक कि तरह चिपकी रहती है. किशोर बिचारा अपना प्रोजेक्ट छोड़ अपनी छद्म संगिनी का प्रोजेक्ट पुरे लगन और मन से करता है लेकिन उसे मिलता क्या है ??? बस थंक्यू के साथ एक कुटिल मुस्कराहट …
प्यार के नाम पर उसका जम के शोषण होता है, और शोषण करने वाली प्रेयसी ये भूल जाती है कि जिस वृक्ष के नीचे उसके हाथ में हाथ डाल मने मन उसका शोषण करने कि अगली योजना बनाती है उस वृक्ष तक को भी वो, वो असहाय मासूम निरीह पुरुष सारनाथ का बोधि वृक्ष समझता है मोहब्बत मे , … जिसके नीचे उसे ज्ञान कि प्राप्ति मिलती तो है लेकिन ज्ञान का संज्ञान बाद में होता है जब वो शोषित हो चला होता है ..
किशोरी मित्र चोंच लड़ा के कभी भी अपने किशोर मित्र को छोड़ दूसरा किशोर मित्र ढूंढ सकती है लेकिन वही जब उलटे किशोर करे तो उसपे शोषण के नाम पर पुलिसिया कम्प्लेंन कर फिर एक बार उसका शोषण किया जाता है.
किशोरावस्था में पहुचते ही किशोरियों कि मानसिक, आर्थिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए पुरुष जब पति बनता है तो उसकी स्थिति और दयनीय हो जाती है. घर पे पति जब कार्यालय से आता है तब मानसिक शोषण का एक और दौर शुरू होता है, उसका मोबाईल नो चेक किया जाता है, ५ मिनट लेट क्यों हुआ , पूछा जाता है, तरह तरह से मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुआ पुरुष जब दो घूंट आबेहायत कि हलक से नीचे उतरना चाहता है तो वहाँ भी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है.
अपने आपको विद्वान कहलाने के लिए पुरुष पूरी जिदगी संघर्ष करता है लेकिन यहाँ भी स्त्री ने उसका पीछा न छोड़ा, डाक्टर कि पत्नी बिना मेहनत के ही डक्टराइन, मास्टर कि मस्टराइन, और वकील कि वकीलाइन बन उसके मेहनत मे सेंध मार जाती है.
जहाँ देखो वही महिलाए पुरुषों का हाक मारने पे उतारू हैं. विज्ञापन कि ही दुनिया ले लीजिए , न मुह पे मोछ न छाती पे बाल फिर भी बिना महिलाओ के ब्लेड का प्रचार अधूरा रहता है यदि फिल्म पे दृष्टि डाली जाए, तो जहाँ नग्नशाश्त्र कि जानी मानी प्रोफ़ेसर सनी लिओन को महेश भट्ट जैसे दार्शनिक अपनी कला फिल्म के प्राध्यापक बना देते हैं दूसरी तरफ उसी विषय के छात्र एन डी तिवारी को सिर्फ अपनी कहानी औरो से सुनकर संतोष करना पडता है, फिल्म तो दूर उलटे खून का सैम्पल माँगा जाता है.
जब जब भी पुरुष अपना मनोबल बढाने कि सोचता है तुरंत महिला मोर्चा का आतंकित नारा ” महिला आरक्षण ” उसके दिल को दहला जाता है , भाई अब कितना शोषण करना है,
अब जरुरत है पुरुषों को एक साथ खड़े होने कि, कदम से कदम मिला के चलने कि, अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने कि, पुरुषों को महिला महाविद्यलों मे ३० % आरक्षण के लिए अपनी आवाज बुलंद करनी होगी , पुरुषों को देल्ही मेट्रो के अगली बोगी मे ससम्मान जगह दिलाये जाने कि भी जरुरत है.
महिलाओं का अत्याचार नहीं सहेगा पुरुष समाज.
पुरुष जब तक खुद अपने बारे मे नहीं सोचेगा तब तक उसका शोषण झारखण्ड के आदिवासियों के तर्ज पे होता रहेगा.
महिला शाश्क्तिकरण पे महिलाओ ने आवाज उठायी,
सम्हाल जा पुरुष तैयार हो जा शोषण के लिए
फिर से तेरी शामत आई,
मैंने पूछा देवी महिलाये कब से कमजोर थी ??
कहानी लक्ष्मीबाई कि नहीं किसी ने सुनाई ,
या नहीं पता कि द्रोपदी ने कैसे महाभारत आग लगाई,
जब उसकी सास खुद एक स्त्री ने ही कि उसकी बटाई.
.
क्या अब भी नारी कमजोर है, जिसने अब भी धूम मचाई.
छोड़ स्त्रीत्व जिसने, ठेके पे भी लाइन लगाई.
नारी शक्ति का क्या कहना, जहाँ पुरुषार्थ भी नंगा होता है,
छोड़ माँ बाप , घर बार , मारा मारा फिरता है.
तब यही कमजोर महिला जम के खूब सताती है,
मूड हुआ तो मान गयी नहीं दूसरे को चली जाती है.
फिर यदि नाजुक है हालत तो हालात किसने बनायी ??
बिना दहेज के शादी कर, क्या अपने बेटे को समझाई,
बहु को जो दे त्रास, निभाए अपना धर्मो सास ,
अब बता क्या यहाँ भी पुरुषों ने घुट्टी पिलाई ??
याद करो मंथरा को जिसने अज्ञान कि जड़ी पिलाई,
आदर्श पुरुष राम ने तब गली कि ठोकर खायी,
खड़ा हो उठ पुरुष , अब है ललकार लगानी,
मिटाना है अब मुछ के साथ, कलंक आँखों का पानी,