पहली बात तो नाम ही गलत है “वीर-भद्र ” अरे भाई कभी कोई “वीर” मनुस्य “भद्र” हुआ है ?? पुराने जमाने कि बात छोडिये. कम से कम कोंग्रेसियों से तो एसी उम्मीद नहीं.
अभी नया मामला आया है कि इन वीर महाशय ने भद्रता पूर्वक लाखो रूपये उगाहे, जिससे कोंग्रेस चिंतित है, हमें भी इनसे सहानुभूति है लेकिन चिंता करने वाली कौन सी बात ?? अरे तो हर हफ्ते का कार्य है कही न कहीं कोई न कही वीरता पूर्वक कोई कारनामा न हो कोंग्रेस किस काम कि ?? एक आदमी जब काम धाम करते हुए बोर हो जाता है तो सप्ताहांत मानता है, वैसे कोंग्रेसी भी अपने हिसाब साप्ताहांत मे कोई न कोई वीरोचित कार्य कर देते हैं जिससे इनका मन बहल जाता है, जिससे इनको अगले हफ्ते के कारनामे करने कि नई ऊर्जा मिलती है.
घोटाला उद्योग और सिनेमा उद्योग मे झंडे गाड़ने के बाद यदि इस प्रकार का कोई कारनामा न हो तो निश्चय ही कोंग्रेस उद्योग सिंडिकेट गड़बड़ा जाएगा. लेकिन डरने कि कोई बात नहीं इस पार्टी के सरकार मे एक से बढ़कर एक वीर हैं. कोई सिनेमा डाईरेक्टर है तो कोई एक्टर, कोई घोटाला एक्सपर्ट है तो कोई उगाहिबाज़, और इसमें बुरा भी क्या है ?? क्या सचिन, धोनी क्रिकेट के अलावा पार्टटाइम विज्ञापन से उद्द्यम नहीं कमाते ??
क्या अन्ना समाज सेवा के साथ साथ चंदा नहीं लेते ?? शायद कोंग्रेस सचिन से ही प्रभावित है तभी तत्काल सांसद बना उनको अपने बगल मे बिठा लिया,अरे भाई मार्गदर्शक बगल मे बैठे तो क्या बात है … आसानी से टिप्स मिल सकती है. अन्ना को रास्ट्रपति पद आफर हुआ था लेकिन उनको पता है कि ये साब बाद मे तिहाड के ड्यूटी पे लगा देते हैं.
बड़े दुःख कि बात है वीर साथ मे अनुचित भद्र जी शर्माते हुए इस्तीफा देने पहुच गए, अरे इसमें शर्माना कैसा ?? क्यों इस्तीफा देना ?? “जो करे शरम उसके फूटे करम, कोंग्रेस को भी पता है कि ये गर्वोचित कार्य है, परम्परागत कार्य है, इसलये बता भी दिया कि अपने पद पे बने रहें और जो आप बच जाएँ तो कुछ हिस्सा जनपथ के जन को हवाले करें. सैयाँ भये कोतवाल डर काहे का ? प्रेमी संग भये फरार डर काहे का ?? आप इस्तीफा दे दोगे तो पार्टी आपके जैसा उगाहेबाज़ फिर कहाँ से लाएगी ?? आप पार्टी मे बने रहिये और प्रियंका गाँधी के शिमले वाले बगंले का कामकाज तन्मयता पूर्वक देखिये. पहले ही पार्टी मदेरना / सिंघवी जैसे कालजयी अभिनेता खो के अपना नुक्सान कर चुकी है.
मुझे याद है बहुत पहले रामायण और महाभारत के लिए सडके ठप्प हो जाया करती थी, लोग दूरदर्शन से चिपके रहते थे, ठीक वैसे ही भारत कि जनता हर सप्ताह बैचनी पूर्वक कोंग्रेस के कारनामे देखने को बेताब रहती है, लेकिन वो रामायण, महाभारत वाली बात नहीं है, कारनामो मे कुछ गुणवत्ता होनी चाहिए, थोडा और उम्दा तरीके से होना चाहिए, बिलकुल लज्जत पूर्ण मदेरणा सिंघवी टाइप. जहाँ हजारों करोडो के घोटाले जनता मे मेगा हिट हो चुके हों वहाँ लाखो के उगाही का प्रोग्राम उतना दिलचस्प नहीं, टी आर पि भी नहीं आ पाती.
गुणवत्ता यदि कलमाड़ी या रोचकता मदेरणा /सिंघवी टाइप रखी जाए तो विज्ञापन से कमाई का एक और अच्छा जरिया बन सकता है. मै तो आश्चर्य चकित हूँ कि वियाग्रा वाले मदेरणा / सिंघवी को क्यों नहीं ढूढ़ रहे ?? उनसे आदर्श कोहिनूर माडल शायद ही कहीं मिले अपने उत्पाद के लिए.
अब देखना है अगले हफ्ते कौन सा सनसनी खेज प्रस्तुति होती है कोंग्रेस एंड इंटरटेनमेंट ग्रुप कि तरफ से.