भारत बड़ा अनोखा देश है, सैकड़ो धर्म /पंथ और हजारो त्योहार हैं, और हर त्यौहार का एकवैज्ञानिक कारन है, जैसे दिवाली के बाद कीड़े मकोड़े मर जाते हैं, नाग पंचमी के दिन सांप को दूध पिलाया जाता है इसका ये मतलब नहीं की हिन्दू धर्म वाले सांप को बड़ा इज्जत देते हैं इसका मतलब ये भी हो सकता है की ले भाई अपना साल भर का कोटा पूरा कर और जान छोड़, ठीक वैसे ही जैसे जैसे चुनाव वाले दिन जनता वोट देके इन नागो को देल्ही भेज देती की, जा भाई वहीँ से जहर फैला बार बार यहाँ आएगा तो हम पर असर जादा होगा. या इसका एक कारन और भी हो सकता है, कौन जाने इन सांपो वोट रूपी ढूध न दें तो डस ले , तीसरा कारन की जनता भी जानती है यदि अपना काम निकलवाना है इन नेतावों और अफसर शाहों को समय समय पे रिश्वत देना होगा. मै तो कहता हूँ भाई वोट दिनाक को भी नाग पंचमी को घोषित कर देना चाहिए इससे नेतावों में भी अच्छी फिलिंग आएगी, या नाग पंचमी को आधिकारिक तौर पर रिश्वत दे घोषित किया जाए, भारत परमपराओ का देश है एक दो नयी परम्परा और जोड़ी जाए तो भारत की जनता को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. लेकिन एक बात और है की इन नाना प्रकार के मीठे और सुगन्धित दूध पिने के बाद कोई गारंटी नहीं की सांप आपको न डसे.
सांप तो सांप होता है भाई उसका दोष क्या ?? आपका खा पी के आपको दंश मारे तो क्या आश्चर्य ?? जब मन किया गठबंधित हो गए, जम मूड किया पलट के डस लिया, एकदम सापोचित व्यवहार कर नेता अफसर ये सिध्ध कर चुके हैं की इनके पूर्वज बन्दर नहीं हो सकते. शोध करने वालो ने बड़ा पक्ष पात किया है, शोध किया की सभी मानव बन्दर है, जबकि शोध से पहले मानवों का वर्गीकरण होना चाहिए था,पहला जनता और दूसरा नेता. तब निश्चय ही ये सामने आता की मानवों में जनता की प्रजाति बन्दर की संतति है और नेता सांपो के अथक परिश्रम का फल है. वैज्ञानिको को इस दिशा में अभी भी शोध करने की आवश्यकता है.
अब आते हैं एक नए परम्परा की और जो इन नेतावों के द्वारा अपनाई जा चुकी है, होलिका परम्परा.
हमारा भारत सदियों से होलिका के पवन पर्व को मनाता आ रहा है, हरिनाकश्यप के पुत्र प्रहलाद को जब पता चला की उसका पिता जनता रूपी ब्रम्हा (ब्रह्मा इस इक्वल टू आल जनता )से वोट रूपी वोट ले के असुर बन और अब अब उन्ही वर देने वालो तक को छोड़ने को तैयार नहीं उन्ही के रक्त से नहाना चाहता है , वरदान का दुरपयोग कर रहा है तो बड़ा दुखी हुआ. उसे मरवाने की कोशिश की लाठियां बरसायीं, उसे भी अपने जैसा भ्रस्ताचारी बनाने का अथक प्रयास किया, लेकिन सब व्यर्थ, वह रहा इंसान ही राक्षस बनाने को तैयार था. फिर हरिनाकश्यप को याद आया की उसकी बहिन बड़ी प्रतापी है उससे सहायता मांगी जाए, मांगी भी और तय हुआ की समस्या के जड़ को की समाप्त कर दिया जाय, जला दिया जाये, अग्नि तो वैसे ही पवित्र होती है जहाँ सब कुछ स्वाहा हो के पवित्र हो जाता है. उपाय अपनाया गया लेकिन प्रहलाद बच गया और होलिका निपट गयी.
लेकिन आज के नेता हरिनाकश्यप के भी बाप है, वो किसी सद्चारी को जलना चाहते थे, जिसको उसने गलती से पैदा कर दिया था लेकिन आज की ये सरकार अपनी पापो को को पवित्र करने में लगी हुई है, भारत के राजा परम्परा को तो भूल गयी लेकिन होली परम्परा को याद रखा. जब पापों की फाईल बढ़ जाए किसी अच्छे युक्ति से उसको पाप मुक्त कर पवित्र बना दो, उस समय तो हरिनाकश्यप को मारने के लिए इश्वर ने खुद नरसिंह अवतार लिया, क्या आज के परिपेक्ष्य में कुछ एसा होने वाला है??? उस समय तो केवल एक राक्षस और आज गिनो एक तो निकेलंगे दस जनपथ पे जन पथिको के के लिए, कलियुग में इश्वर तो आने से रहे और यदि आ भी गए तो उनपे भी सैकड़ो फर्जी मुकदमे डाल किसी काल कोठरी में भेज के उनके कृष्ण अवतार परम्परा को फिर से जीवित कर देंगे, या गंगा नहान परम्परा अपना लेंगे, जो अपनाना अभी बाकी है.