इनोसेंस आफ मुस्लिम्स, बिना बॉक्स आफिस के बड़ी हिट

अमेरिका में बनी “इनोसेंस ऑफ़ इस्लाम”  एक चलचित्र आजकल  रजत पटल पे धूम भले न मचा रही हो, लेकिन मुसलमानों के दिलो में हलचल जरुर मची है.  खैर यदि इस ख़ास सिनेमा की बात की जाए तो हर प्रकार से घटिया  है, चाहे पात्र या चरित्र चित्रण दोनों ही.
इसमें मोहम्मद जी की जीवनी को बड़ा ही वीभत्स दिखाया गया है. कुरआन किसने लिखा या लिखाया ये दो  लोगो के विचारो में मतभेद हो सकता है, उसपे  बहस भी हो सकती है, होती भी है, लेकिन किसी के बारे में इस तरह की घटिया फिल्म बनाना पूरी तरह से निंदनीय है.
खैर इसके प्रतिक्रिया स्वरुप दुनिया भर में मुसलमान  प्रदर्शन कर रहे है, कीसी एक आध देश में अमेरिका के राजदूतो को ही उड़ा दिया  गया है. और कई देशो में वीभत्स तरीके से प्रदर्शन भी हुए है.  विरोध करने के ये तरीका भी निंदनीय है.
अभी हाल में  गाजियाबाद  में कुरआन जलाने के मामले पे  एक इस्लामी धर्माधिकारी ने पुलिस स्टेशन में ही जा के पुलिस को गोली मार दी जिससे वो सिपाही तो बिचारा स्वर्ग सिधार गया. लेकिन वो जला हुआ पन्ना ठीक नहीं हुआ.
मुल्लों की मूर्खता का तो ये आलम है कि ये उस “अमेरिकी फिल्म” का विरोध प्रदर्शन  हमारे हिन्दुस्थान में भी कर रहे हैं (जबकि हमारी सरकार आनन्-फानन में इस फिल्म को हिन्दुस्थान में पहले ही बैन कर चुकी है, इस पर, यहाँ ध्यान देने की बात है कि मकबूल फ़िदा हुसैन द्वारा बनाई गयी  भारत माता और, हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीर बनाने पर इन्ही कांग्रेसियों ने उसे अभिव्यक्ति का अधिकार करार दिया था..) और तो और आजम खान जैसे नेता तक धर्म को ऊपर रख भारत माता को डायन तक कह देते हैं.
जरा सोचने वाली बात है की मोहम्मद जी का चित्रण क्यों नहीं हो सकता ? उसमे कोई बुत परस्ती भी नहीं है ?? पुरे दुनिया में राम , कृष्ण , और ईसा मसीह का चरित्र चित्रण होता है ताकि एक आमजन उनसे प्रेरणा ले सके गलत सही का अंतर समझ सके ?? लेकिन मोहम्मद का चरित्र चित्रण क्यों नहीं हो सकता ??? तो बात आके अटकती है की जरुर कही न कही लूप होल है .. चरित्र का चित्रण करने में जगजाहिर बातो को तो  दिखाना ही होगा. अब कैसे दिखाया जायेगा की मोहम्मद ने किन किन परिस्थितियों में क्या क्या किया  ?? हालाकि की चरित्र चित्रण  में कोई बुत परस्ती नहीं है..
यदि इस प्रकार से देखा जाए तो कुरआन भी महज एक किताब ही है, तो एक अखबार और कागद के किताब के लिए इतना उत्पात क्यों होता है ?? क्या इसलिए की मुसलमानों की पवित्र पुस्तक है ?? यदि हाँ तो ये भी बुतपरस्ती ही है… जैसे अल्लाह के मसेंज्र्र मुहामद की पूजा नहीं की जा सकती वैसे ही कुरआन की भी , जब जिसकी पूजा ही नहीं की जा सकती तो उसके लिए सियापा क्यों ??  किताब जलने या फुकने का ये मतलब तो नहीं है न की अलाह की बात ही मिट गयी , तो फिर चरित्र का चित्रण करने में भी क्या दिक्कत है ??  दूसरी बात कुरआन में अल्लाह को सर्वश्रेष्ठ माना  गया है , न की मुहम्मद जी को ,  तो मान लो किसी घटिया आदमी ने गन्दा चित्रण कर ही दिया तो सेंटी होने वाली क्या बात थी ?? अरे वो अल्लाह तो है नहीं न ?? और मसेंजर अल्लाह नहीं बन सकता ..
अब कुछ लोग कहेंगे तब मूर्ति टूटने पर हिन्दुओ को भी रोष नहीं व्यक्त करना  चाहिए, तो भाई , ये सब तो हमारे “रिचुअल्स” में है “सेरेमनी ” में है, ये हमारी आस्था है, हमें बताया जाता है जो भी तुम्हारे आसपास है वन्दनीय है, सबकी इज्जत करो , किसी को कष्ट न दो … लेकिन अल्लाह ने कुरआन में कहा है जो भी है अल्लाह है , तुम कुछ भी करो बस अल्लाह को मानो , तो मुहम्मद के चित्रण पे  के लिए इतना सियापा क्यों ?? अल्लाह का चित्रण तो नहीं है न ….

मै ये कहना चाहता हूँ की कुरआन यदि आपकी पवित्र पुस्तक है तो आप किसी भी हद तक गुजर जाते हो, मरने मारने पे उतारू हो जाते हो, जबकि वो चाहे जीतनी चाहे छपवा लो, लेकिन वही अफगानिस्तान में, श्रीलंका, यहाँ तक की भारत समेत दुनिया भर में जहाँ भी इनका बस चलता है, मुर्तिया तोड़ने से बाज नहीं आते, जबकि एक मूर्ति टूटने के बाद दुबारा वैसी नहीं बनायीं जा सकती जैसी वो पहले थी. अरे भाई कम से कम वास्तुकला का नमूना मान का ही छोड़ दिया करो.

तो जरा सोचिये बौध धर्मालंबियो को कितना प्रदर्शन करना चाहिए था ? या हिंदुवो को कितना  प्रदर्शन करना चाहिए ?? निश्चय ही हिन्दू ,बौध्ध  सिख्ख ईसाई और अन्य कौमे सहिष्णु  है या  इतना तो तय है की को जादा मार काट नहीं कर सकते जैसे की ये मुसलमान कौम करती है.अब ये कौम इतना दंगा या हिंसक प्रदर्शन  करती है ???  निश्चय ही ये कुरआन का असर होगा, अन्यथा दुनिया में और भी मजहब और समुदाय है जो न तो इतने कट्टर है न ही उत्पाती …

“तुम बेवफा ही सही, लेकिन इश्क है तुमसे,

खुद जल जायेंगे या जमाने को जला देंगे,”
एक तरफ तो कुछ बुध्दजीवी मुसलमान इस्लामी आतंकियों पे दलील देते हैं की कुछ घटिया मुसलमानों के खातिर हमारी कौम को बदनाम करना ठीक नहीं है, और उनका ये कहना भी जायज है, इसमें कोई बुराई भी नहीं,  मुठ्ठी भर कुछ  घटिया मुसलमानो की वजह से उन पर अंगुली उठाना गलत है, अब आईये दूसरा पहलू देखते हैं , तो मै  उन्ही मुसलमान भाईयो से पूछना चाहता हूँ, की यदि मान लो अमेरिका में किसी घटिया  इंसान ने कोई घटिया सी फिल्म बना ही दी तो क्या अधिकार था उस समुदाय से सम्बंधित एक राजदूत की हत्या करने की, जुल्म करने की  ??  तोड़ फोड़ करने की ??? और ये कोई पहली बार नहीं हुआ है, कोई सौ साल पहले भी स्वामी श्रधानंद समेत अन्य लोगो की हत्या भी मुसलमानों द्वारा सिर्फ  इसलिए की गयी की एक आर्यसमाजी ने इनके मुहम्मद के ऊपर कोई किताब लिख दी थी, उससे भी जादा आश्चर्य जनक बात ये है की ये  उस हत्यारे को ये अपना क्रांतिकारी, मसीहा और अल्लाह का बन्दा  मानते है .  
ये कौम अपने लिए जो चाहती है वही दूसरो के लिए क्यों  नहीं करना चाहती.  यदि आप  चाहते है की कुछ घटिया मुसलमानों की वजह से  सारे मुसलमानों को न बदनाम न किया जाए तो यही आदत पहले आप खुद अपने आप में लाईये, किसी दुसरे देश की बात को ले के तीसरे देश में शुरू हो जाते है, उस व्यक्ति के समुदाय से सम्बंधित दुसरे व्यक्तियों को मारते है, उत्पात मचाते है, सरकारी सामान्य जन की वस्तुवो को जलाते हैं नष्ट करते है,ऐसे  समय में इन बुध्ध्जिवियों की  दलीले गायब हो जाती है.  
सब मिला के मतला ये है की मोहम्मद के जीवनी का चित्रण होना चाहिए और उनकी अच्छाईयों को समाज में दिखाना चाहिए, कमियाँ तो लगभग सबमे होती है , खुद राम भी बारह कला संपन्न थे न सोलह की पूर्ण सोलह  कला, मोहम्मद भी खुद मैसेंजर थे  न की खुद  अल्लाह, तो जाहिर है कमियाँ  भी रही होंगी, लेकिन जो भी अच्छाइयां  थी उनको समाज को जानने का पूरी तरह  हक़ है ताकि एक सामान्य उनके बारे में जान सके उनके आदर्शो पे चलने का प्रयत्न कर सके, बजाय की कोई मानसिक  विक्षिप्त के द्वारा बनायी गयी एक एक घटिया फिल्म.
अच्छा हुआ भारत सरकार ने इस सिनेमा को भारत में बैन कर दिया.
सादर
कमल कुमार सिंह

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