भारत एक सेकुलर देश है. जहाँ हर धर्मो का सामान रूप से अधिकार दिया जाता (ऐसा कहा जाता है, हलाकि ऐसा होता नहीं ) . पहले मै ऐसा ही समझता था, वास्तव में सेकुलर की जगह शब्द “शेखुलर ” इस्तमाल करना चाहिए, क्योकि ये देखने में आया है की हिंदू की मान हानि, धार्मिक भावना पे आघात हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता इन शेखुलर को . इस हिंदू बहुल देश में सारी बाते मुल्ले मौलवी (कुछ ) तय करते हैं, जिसके चलते सीधे सादे मुसलमान भी बिचारे पिसे जाते हैं दुराव बढ़ता चला जाता है .
हाल की घटना है कुछ इस्लाम धर्म के लोगो ने एक मंदिर में पूजा के खिलाफ शिकायत कर दी , सो वहाँ की सरकार ने उस मंदिर में घंटा बजने की मनाही कर दी. क्या ये उचित है ?
ये समाज में दुराव फ़ैलाने की योजना तो नहीं ?
इसकी वजह से देखने में आया की सारे हिंदू देश भर में मुसलमानों कोसना शुरू कर दिया जो की गलत है . हाँ एक बात हो सकती थी की हिंदू और मुसलमान दोनों मिल कर इस घटना की निंदा करे , पर अफ़सोस मुसलमान भाईओं ने साथ नहीं दिया , शायद उनको भी लगता मंदिर का घंटा व्यवधान लगता होगा .
अब मान लीजिए कल को कोई हिंदू अजान पे रोक लगाने के मांग कर दे तो ?
सब मिला कर ये सब राजनितिक हथकंडे है जो की मुसलमानों को भी समझना चाहिए . कुछ बिंदुओं को इंगित करना चाहूँगा :-
१.धर्म के आधार पे आरक्षण क्यों ??
२. यदि अल्प्शंख्यक के नाम पे तो सिर्फ मुसलमानों को क्यों ???
३. क्या अल्पसंख्यक सिर्फ मुसलमान हैं ? सिख्ख , ईसाई और बूधिष्ठ भाई अल्पसंख्यक नहीं ??
४. जनसँख्या के आधार पर आरक्षण क्यों ? यदि जनसंख्या के आधार पर आरक्षण होना है तो तो सबसे जादा इस देश में हिंदू ही है .
५. यदि धर्म और जनसंख्या के आधार पे मुसलमानों को आरक्षण देना तर्क पूर्ण है तो ये सोचना लाजिमी है की हिंदू दलित भी आज नसबंदी करता है लेकिन मुसलमान नहीं , तो क्या भविष्य में ये बढ़ता चला जायेगा ???
अब शलमान रश्दी भारत आने वाले हैं सो मुल्लो का फ़तवा जारी हो गया, की यदि रश्दी भारत आ गए तो गडबड होगा, सरकार अब सोच मे पड़ गयी है ,
मुझे समझ नहीं आता यह लोकतान्त्रिक सरकार है या लोकतंत्र के नाम पे तालिबानी सरकार.
भाई साहित्यियक सम्मेलन हैं उसमे कोई भी आ सकता है, हाँ यदि धर्म विशेष पे उन्होंने कोई टिप्पडी की है तो ये निंदनीय है लेकिन फिर भी धर्म गुरु या मौलवी सिर्फ अपने धर्म से ही बहिस्कार कर सकते हैं न की हिन्दुस्तान से . क्या देश किसी धर्म विशेष का है ? यदि है तो भारत सेकुलर कैसे ?
जिस सरकार को कालेधन के लिए पूरी जनता न झुका पायी उस सरकार को देवबंद के फतवे ने झुका दिया , क्या यही है हमारे भारत की निरपेक्षता ??
अब समय आ गया है जब हिंदू और मुसलमान एक हो के इन कठमुल्लो और धर्म गुरुओं के उल जलूल बातो का विरोध करे क्योकि इस्लाम इतना कमजोर नहीं की एक घंटे से हिल जाए या सूर्य नमस्कार से मिट जाए .
देश के सेकुलर लोग अफजल गुरु के माफी के लिए हवा बनाते हैँ और रुश्दी जो एक बड़े भारतीय अतंराष्ट्रीय लेखक है उनको रोकती है ।
देश को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए “सर्वधर्म समभाव ” की भावना लाना जरुरी है , और ये बात मुसलमान भाईओं को भी समझना चाहिए और गैर इस्लामिक लोगो को काफिर और कुफ्र जैसे शब्दों से नवाजने से भी बचना जरुरी है .
झुक जाता है सर मेरा, जब कोई मंदिर दीखता है ,
करता लेता हूँ इबाबत जब कोई मस्जिद दीखता है ,
प्रेयर , करके इसा की, कुछ और आनंद ही आता है ,
स्वर्ण मंदिर देख, सर नतमस्तक हो जाता है,
शायद यही है व्याख्या धर्म कि, जो ये अज्ञानी कर पाया,
ग्यानी हमें बनना नही , जिन्होंने धर्म भेद फैलाया,
सुना है ग्यानी आजकल , संसद में बैठते हैं,
धर्म को अधर्म बना, इस देश को डसते हैं ,
तो दोस्तों आप ही बताओ उन्हें ग्यानी कहूँ सांप,
जिनका काम है डसना उसको , जिसके आस्तीन में पलते हैं,
कमल