सम्मलेन

 सम्मेलन अर्थात व्यक्ति समूहों  का किसी एक स्थान पे मिलन, ये किसी भी प्रकार का हो सकता है, किसी नेता का सम्मेलन जिसमे विपक्ष की साजिश द्वारा मधुमख्खी आक्रमण करा दिया जाए, या किसी विश्व विद्द्यालय के पुरातन छात्रों का, जिसको अलुमनी मीट कहते हैं. व्यवसायियों के मीट को कारपोरेट मीट कहते है जिसको  को मै मीट नहीं मानता, क्योकि उसमे आर्थिक अर्थ निहित होता है.

अलुमनी मीट  मुझे इसके बारे में पता न था, आखिर आज तक किसी ने प्यार से बुलाया ही न था, जिस स्कूल कालेज से निकले सब  ने चैन की साँस लली, की चलो  इस साल बला टली, बुलाने की तो बात दूर, मित्र से पूछा  तो उसने बताया, अलुमनी मीट में वरिष्ट छात्रों को बुला के उनसे कनिष्ठ छात्रों से परिचय करवाते हैं ताकि उनका मार्गदर्शन हो सके, फिर भी मेरे मन में संशय था की कहीं बुला के पुरानी बाते याद दिला के बेइज्जत तो न करेंगे, मुझे वैसे भी अपने अध्यापको पे विशवास  कम ही होता था, और मै कौन सा कनिष्ठों का मार्ग दर्शन कर दूँगा ??  बल्कि उल्टा मेरे लपेटे में आ गए तो सारी दुनियादारी सिखा एक नंबर का बना दूँगा, फिर उनको अपने भविष्य की चिंताए छोडनी पड़ेंगी, क्योकि तब उनका कुछ नहीं हो सकता .

 इस महीने मैंने एक ही दिन में दो सम्मेलन में उपस्थिति दर्ज कराई,  एक तो क्रिसमस की फैमिली मीट, जिसमे अपने पत्नी के साथ खुद भी उपस्थित होना था, हम भी आमंत्रित थे, ठीक नियत समय से पहुच गए, सबको नमस्कार-प्रणाम कर बच्चो से उनका नाम हाल पूछा, ठिठोली की, किसी ने  पूछा भाभी जी को नहीं लाये ? मैंने बता दिया , घर की बात घर में रहे तो जादा अच्छा है, मै किसी को नहीं बताना चाहता की दिन में एकाध बार पड़ भी जाती है.  वहाँ तमाम तरह के आयोजन किये थे, एक कोई मनोरंजन के लिए भी आया था जो बारी बारी हर एक जोड़ा को बुलाता, और पति से अपनी पत्नी को आई लव यू कहलवाने का असाध्य काम करवाता,

 मैंने उससे पूछा “तू शादी शुदा है ??

उसने कहा “नहीं ,

तो जितना आई लव यू बोलना है अभी बोल ले, शादी के बाद अपनी बीवी को बोल देगा तो पक्का मै गारंटी लेता हूँ तुझे “नोबेल”  दिलवाने का, यदि न दिलवा पाया तो तेरे सामने मै खुद अपनी बीवी को आई लव यू बोल दूँगा .

 

खैर जैसे तैसे निपटा के मै सापला कि तरह रवाना हुआ, सोचा एक आध घंटे में पहुच जाऊँगा तब भी बहुत सेलिब्रेटियों से मुलाक़ात हो जायेगी, वैसे पहले ही बहुत देर हो चूका था, समय पे पहुचना संभव न था,फिर भी दिल में जोश भर के निकल लिया. हालाकि यहाँ से कोई बुलाया तो न था लेकिन हम खुद मुह उठा के जाने को तैयार थे सो दो  चार बार सम्बन्धित व्यक्तियों को सूचित कर दिया था कि अवांछित व्यक्ति मै भी होऊंगा.

 

रास्ते से अनजान था, तो बस पकडने कि सोच एक भद्र से बस स्टैंड का रास्ता पूछ लिया, “यहाँ सीधे चले जाओ, फिर रहीम पान वाला आयेगा, उसके सामने एक पीपल का पेड़ है, वहाँ पहुच के किसी से भी पूछ लेना कि बस स्टैंड कहाँ है “भद्र ने सलाह दी, जो कि मैंने नहीं ली.

 

बगल में एक युवती खड़ी थी, भली लगती थी, मैंने उनसे भी रास्ता पूछा  “तुम मर्दों को लड़किया ही दिखाई देती है रास्ता पूछने को, मौका मिला नहीं कि चूकना नहीं चाहते, तुम्हरे जैसे लडको के कारण ही लड़किया असुरक्षित है देलही में”  उनका जावाब सुन जब आस पास दृष्टी डाली तो लोग मुझे ही देख रहे थे,मन मसोस एक रिक्शा लिया और अंततोगत्वा  मै जिस २० रुपयों को बचाना चाहता था  न चाहते हुए भी उसकी आहुति देनी पड़ी.

 

पूछताछ से पूछने पे पता चला कि अगली बस दो घंटे बाद का शेड्यूल हुआ है, सुन मन खिन्न हो उठा, एक तो उस बुजुर्ग कि सलाह, फिर उस युवती कि कचकच, अब इनकी बस वाली भविष्यवाणी.

किसी ने सुझाया, मेंन  रोड से प्राईवेट बस ले लो, मुझे जंच गया, दिल पे पत्थर रख एक प्राईवेट बस में घुस तो गया लेकिन ऐसा लगता था जैसे अंग्रेज निरीह भारतीयों को ठूंस ठुसं के भरने के बाद एक जेल से दूसरे जेल ले जा रहें हैं, तभी बस के अंग्रेज ने हाक लगाई, “पाछन हो ले भाई , पछान हो ले ” और डर के मारे  निरीह जनता खुद ही एक दूसरे  पे  दबाव बनाने लगी पीछे होने के लिए, कहीं ये अंग्रेज नाराज न हो जाए. 

 

मै किसी कोने खड़ा हो लिया और भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि कोई यहाँ  धक्का मुक्की करते न देख ले,

बस थोड़ी ही दूर चली थी कि हलचल कि आवाजे आने लगी,

” मै तुम्हे देख लुंगी  जानते नहीं तुम मुझको ” किसी महिला कि आवाज थी , 

” देखिये  आप अभद्रता से बात न कीजिये नहीं तो ..” किसी पुरुष ने कातर शब्दों में याचना पूर्वक चेतावनी दी.

 

अगले स्टॉप पे दोनों ही उतर गए,

पीछे होने के कारण पीछे वाले बस अपने आगे वाले का सर ही देख सकते थे, सो कयास लगने लगे, “महिलाये पुरुषों पर तत्काल लांचन लगा देती है, अपनी गलती नहीं दिखती, पुरुष तो अच्छा दिखता था वो छेड छाड न करेगा, और उनको अपने उम्र का भी ख्याल नहीं , इस उम्र में कौन छेड़ेगा उनको”.  जितनी मुह उतनी बाते, बाद में मामला साफ़ हुआ कि बात छेड -छाड को ले के नहीं, बल्कि सीट को ले के थी. कयास लगाने वालो के चहरे लटक गये, इस लिए नहीं कि उन्होंने गलत सोच लिया, बल्कि इस लिए कि इतने दिलचस्प मुद्दे पे लगाया कयास झूटा साबित हो गया, सीट वाली बात तो आम है, और उसमे कोई मजा भी नहीं. 

 

खैर जैसे तैसे “स्टैंडिंग लाईव  इंटरटेनमेंट” के  दो घंटे बाद अपने पहले पड़ाव पंहुचा, यहाँ आते आते शाम के पांच बज गए थे, फिर भी दिल में उमंग भर एक चाचा से वाहन के बारे में पूछा, तो उन्होंने झट हाथ पकड़ एक ओर खीचना शुरू किया, मैंने कहा “मैंने क्या किया बस रास्ता ही तो पूछा है”,  तब तक उन्होंने मुझे एक जीप में घुसा दिया फिर कहा “ये वाली जायेगी साहेब “ .  उनके इस अंदाज से पहले मै डरा लेकिन बाद में प्रभावित भी, सिर्फ बताया ही नहीं बल्कि चढा भी दिया.

 

कुल तीस मिनट बाद  साँपला चौक उतर एक बुजुर्ग से फिर पूछा “ये कवि सम्मेलन कहा हो रहा है चाचा ?” पहले तो उन्होंने मुझे सर से पाँव तक घूरा जैसे कोई एलियन देख लिया हो, फिर कहा , मै तो समझता था कवि या लेखक अन्ना टाइप के बूढ़े बुजुर्ग लोग होते हैं, तुम तो अभी जवान हो फिर भी इन सब का शौक ?? बेरोजगार हो क्या ??? . चलो मै पंहुचा देता हूँ मै भी उसी तरफ जा रहा हूँ. कोई आधा किलोमाटर पैदल चलना था, उस बीस मिनट में मुझे उन्होंने पूरी दुनियादारी  बता दी, बताया कि कैसे आजकल युवा पीढ़ी साहित्य और कला के बारे में नहीं सोचती, बताया कि अपने ज़माने में वो अपने अध्यापको को कैसे पिटा करते थे, इतने मित्रवत हो गए कि अपने कई  प्रेयसी के नाम भी बता दिए साथ में स्पष्टीकरण भी कि शादी के बाद वो पत्नी समर्पित हो गए . मैंने मन ही मन कहा, खुद तो हुए नहीं होंगे, शेरनी देख अच्छे अच्छे  शेर मेमने बन जाते हैं.

 

खैर बीस मिनट का “वाकिंग लाईव इंटरटेनमेंट” समाप्त हुआ और मै निर्धारित जगह पे पंहुचा गया. हाल में घुसते ही दो हट्टे -कट्टे लोग नजर आये, हमने पूछा, लोग यही हैं??? उन्होंने एक दूसरी तरफ अंगुली दिखा कहा

 “उधर है आपकी मंडली ”  शायद थकान के कारन उतरे हुए चहरे को देख उन्होंने भांप लिया था मेरी केटेगरी.

 

खैर मीट खत्म हो चुकी थी उस समय तक लेकिन सम्मेलन बहरह बजे रात तक चलना था, अभी मध्यांतर चल रहा था सो सभी रजाई में दुबके, हास परिहास, वाद विवाद में उलझे थे, मै भी सबको सदर प्रणाम बोल रजाई के कोने पे कब्ज़ा जमाया,  सबसे परिचय होने के बाद जम के विभिन्न मुद्दों पे बहस भी हुआ कोई अन्ना -बाबा के बारे में बाते कर रहा था तो कोई जातिवाद कि चुटकी ले रहा था,  मैंने मौका देख आशुतोष भाई से  आयुर्वेदिक व्हिश्की बनाने की  दरख्वास्त को बाबा तक पहुचाने को बोल दिया .

 

सबसे परिचय होने के बाद देलही के कुछ संगी चलने लगे, हमने सोचा चलो हम भी निकल लेते हैं , मिलने के लिए आया था सबसे वो तो कर लिया, अब यहाँ रुकने का क्या औचित्य, सो रेलवे स्टेशन कि तरफ बढ़ने  लगा, तभी आशुतोष भाई ने आवाज लगाई, चलो इसी में चलते हैं जल्दी पहुच जायेंगे, मैंने उनके कार कि तरफ देखा ,पहले ही तीन स्वस्थ लोग थे, मै कहाँ आ पाता फिर भी प्यार भरे आग्रह को न ठुकरा पाया, एक के ऊपर एक बैठ लिए, गाड़ी थी तो नयी चमाचम लेकिन शायद अभी शुरुआत थी इंजन रवा न हुआ था सो १० कि स्पीड से चली, आशुतोष जी जो खुद पाईलट कि सीट सम्हाल रहे थे चिंतित थे, कि पहुच भी पायेंगे या नहीं, लेकिन सच बताऊ तो मुझे बड़ा आनंद आ रहा था, पहली बार ऐसा मौका मिला थी कि व्यंग और अन्गुल्बाज अब एक साथ बैठे थे तो हो जाए लेट, और कार को धीरे चलने के लिए साधुवाद दे रहे मन ही मन, कार ने भी हमारी भावनाओं को पूरा इज्जत दी, इतनी मस्ती से चल रही थी कि रास्ते में पडने वाले किसी भी वस्तु का स्केच बनाया जा सकता था, मुझे मेरी स्केच बुक कि कमी खलने लगी.

आशुतोष जी बार बार भगवान से प्रार्थना करते कि कि गाडी गति पकड़ ले, लेकिन वो क्यों पकडे भला ? हमारे ह्रदय को चोट जो लगती, कार थी भी बिलकुल जलन और इर्ष्या से रहित, सीधी  तो इतनी कि कोई साईकिल वाला भी पार कर जाता तो आग बबूला न होती. और पैलट सीट के बगल में बैठे लेखक मित्र कार और आशुतोष जी का उत्साह वर्धन कर रहे थे  ” बहुत सही चल रही है , चले चलो बढे चलो, अब देल्ली दूर नहीं, हम अपने लक्ष्य तक जरुर पहुचेंगे” 

 किसी ने सुझाव दिया कि किसी मकेनिक कि दूकान देख रोक ली जाए, तभी किसी ने कहा कि नहीं, जहाँ मकेनिक और ठेका दोनों हो वही रोकी जाए, लेकिन ठेका और मैकेनिक दोनों भारत-पाकिस्तान हो चले थे , एक साथ दिखाई ही न देते. 

खैर गाडी अब देलही के सीमा में प्रवेश कर चुकी थी तो  तय हुआ कि क्यों न भार कम कर दिया जाए ? सो एक मंडली में से एक मित्र को बस पकडाया गया, लेकिन गाडी आज पूरी तरह से मदमस्त हो सटर डे नाईट मनाने के मूड में थी.

किसी तरह मेट्रो पास देख आशुतोष भाई ने सुझाव दिया कि कमल और कनिष्क मेट्रो पकड़ लें, हम घर पहुच के फोन कर देंगे , सुझाव पे अमल हुआ, हमलोग घर भी पहुच गए लेकिन आशुतोष भाई का फोन नहीं आया है अभी तक , आशा है की अब तक पहुच चुके होंगे , किसी को इसके बारे में जानकारी हो तो जरुर इत्तला करे…

 सादर कमल

 

२५ / १२ / २०११

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