खेल भावना एक एसी भावना है, जिसमे एक होने कि पूरी “संभावना” होती है, भारत पाकिस्तान को ही देख लीजिए, जब तक आपस में न खेले, एक होने कि नौबत ही नहीं आती है, चाहे क्रिकेट का खेल हो या बोर्डर का.
बोर्डर की खेल भावना जादा प्रबल है, दोनों समान भावना के साथ एक दूसरे पे ठायं – ठायं और दोनों तरफ के सैनिक पृथ्वी छोड़ स्वर्ग में एक हो जाते है. क्रिकेट में तो फिर भी दान- दक्षिणा का प्रभाव है.
दान -दक्षिणा प्रभाव की तो जितनी भी प्रशंशा कि जाए कम है. राजा बलि “दान” के चक्कर में अपना सर्वस्व चौपट कर पाताल जाना पड़ा, वहीँ वामन अवतार दान पाते है विराट हो गया, यानी दान किसी भी क्षुद्र व्यक्ति को कहाँ से वहाँ पंहुचा देता है, जहाँ वह अमुक सोचता है.
भारत में तो इसका प्रचलन जोरो पे है, कोई जनता से दान लेता है, तो कोई बिदेशी जनता से,यहाँ तक है कि वेबसाइट बना के रुपया द्वार तक बना देते हैं, ताकि दान लेने में कोई दिक्कत न हो, ठूंस दो जितना ठूंस सकते हो. करते धरते कुछ नहीं सिवाए अनशन के और भारत भ्रमण कर कर के भ्रम फैलाते हैं, और रुपया दबा जातें हैं.
वहीँ कुछ ऐसे भी हैं जो पूरा दान अपने गुण से लेते हैं बदले में कुछ देश को भी देतें हैं , प्रत्यक्ष रूप में लगा के देश सेवा करते हैं और संपत्ति का पूरा ब्यौरा देते है , कई लाख किलोमीटर यात्रा भी करते हैं, जन चेतना जगाते हैं .
जी हाँ, ये हैं अन्नासुर और बाबा रामदेव . दोनों के स्वभाव भी एक दूसरे से मिलते भी हैं. दोनों हमेशा माया से दूर रहे. बिचारे मन मसोस के इन्द्रियों को वश में रखा, दान के चक्कर में दोनों ने अपने आप को देश हित में दान कर दिया, और दोनों ने देश- विदेश से जम के दान लिया.
दोनों चट्टे बट्टे लेकिन कहते, लेकिन प्रतिस्पर्धा में एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं. खैर बाबा रामदेव तो भगवा पहनते हैं .
(भगवा का मतलब संघ न समझ लीजियेगा, मै खलिश रंग कि बात कर रहा हूँ ) सो थोडा बहुत धुल धक्कड़ भागम भाग में लग भी जाए तो कोई बात नहीं.
लेकिन अन्नासुर की धोती एक दम चकाचक सफ़ेद. शायद रोज शाम को मीडिया से साफ़ करवाते होंगे और पत्रकारों, लेखकों से इस्त्री.
दोनों के अपने अपने समर्थक है, कोई बाबा कि दवा खाता है तो कोई अन्ना की कसम.
बाबा अपना समर्थन अन्ना को देने का भरकस प्रयास कर रहें हैं, लेकिन अन्ना खुद ही मजबूत आदमी हैं, क्यों ले भला???? “भगवान देता है मगर दुबे नहीं लेता” इसको कहते हैं खुद्दारी, जो सिर्फ दान लेते समय नहीं होती, वैसे भी दान और खुद्दारी दो अलग अलग चीजें हैं.
एक सरकार है जो न तो बाबा को काला धन देती है, न अन्ना को जनलोक्पाल. एकदम निरपेक्ष, दृण, मजबूत इरादों वाली सरकार. बुलंद हौसलों वाली सरकार.
वास्तव में असली योगी तो अपनी सरकार है, जिसको किसी माया मोह से कोई मतलब नहीं, इनके लिए क्या बाबा और क्या अन्ना, जनता तो बड़े दूर कि कौड़ी है. योगी को माया मोह हो भी क्यों भला ??, उसका तो बस एक ही लक्ष्य होना चाहिए. इस योगी का भी एक ही लक्ष्य है,
“माया -मोह छोड़, करे कोई कितना हूट,
लोक परलोक बन जयिहें, जब जम के करेगा लूट”
कोई कितना भी शोर मचाये-छाती पीटे ,विघ्न डाले क्या मजाल जो हमारी योगी सरकार अपने विचारों और लक्ष्य से भटके. योगी तो बस आश्वासन का आशीर्वाद दे सकता है. अपनी सरकार ने भी दिया “शीत सत्र में जनलोकपाल का”. लेकिन अब आशीर्वाद फलित तो तब होगा जब योगी जोर लगायेगा. अरे, फिर वही बात, योगी इस पचड़े में क्यों पड़े भाई, सो पलायन कर जाओ, सत्र ही न चलाओ. एफ डी आई का झुनझुना पकड़ा दो.
कोई भी सच्चा योगी अपना धर्म भ्रष्ट क्यों करे भला ??? सो माया मोह को आपस में लड़ा दो, एक साथ रहे तो कौन जाने योगी धर्म भ्रष्ट हो जाए ??
सो साध्वी उमा को बाबा के मोह का और योगी अग्निवेश को अन्ना के माया का ठेका दिया गया. दोनों ने बखूबी काम भी किया, पुरस्कार भी मिला, एक प्रदेश प्रभारी बन गयी दूसरा बिग बोस् का योगा टीचर.
अन्ना के माया टीम में अभी भी भेदिया होना था, नहीं तो बाबा के मोह को कौन कोसता ?? और यदि न कोसता तो बाबा समर्थक अन्ना समर्थक कि बखिया कैसे उखाडते ??? और नहीं उखाड़ते तो माया मोह कैसे नष्ट हो ??? सो एक भद्र पुरुष है डा कुमार विश्वास, जो किसी ज़माने अपने रोमांसी कविता और चुटकुलों के बीच बाबा के कसीदे पढ़ा करते थे, सो पहला हमला माया टीम से मोह टीम कि ओर “गोली- वोली बेचते थे, क्या जरुरत थी इन सब कि, अन्ना ठहरे फकीर आदमी सो उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा, बाबा कि तो कितनी बड़ी दूकान है, उसी को सम्हालते” लो भाई हो गया काम. “लोटा बिन पेंदी का हो गया, जो कभी उधर लुढकता था आज इधर लुढक गया” . वैसे बाबा ने किया भी था गलत, अपने “जागरण कवि सम्मलेन” में क्यों न बुलाया था, विश्वास पे विश्वास न था??
तभी कोई बाबा समर्थक जो अन्ना के साथ भी था, छटक गया, मेल भेज दी ” भाई किस बात का फकीर अन्ना ?? जिसने पता नहीं चूसा कितना गन्ना. करोरो के दान का मालिक हो के उसकी मर्जी कि मंदिर में रहे या मस्जिद में, भाई मंदिर में रहता होगा तो वहां व्यवस्था भी चका चक होगी, नहीं इतना सफेदी आज के महगायीं में मेंटेन करना मुश्किल है, गाँव में हैं सो रोज के अलाटेड छब्बीस रूपये तो सिर्फ धोती के मांड और इस्त्री में निकल जाते होंगे. फकीर तो सड़क में ही मर जाता है, न की फाईव स्टार मेदान्ता हस्पताल में जाता है. एसी बाते मत बोलो भाई नहीं तो योगी -निर्मोही सरकार और तुम्हरे माया में क्या अंतर? अन्ना मीडिया में कहते हैं कि उनके महीना का खर्च ४०० रुपया है, भाई क्या हवा पी के जीते हैं, उनके आयोजन में जो लाखो खर्च होते हैं वो ?? खैर वो तो जनता का है.
अन्ना कहता है कि यदिलोक पाल पास हो गया तो कोंग्रेस का सपोर्ट करेगा, यानी कोंग्रेस का एजेंट है क्या ?? कभी ये हुआ कि चोर जब माल देदे तो पोलिस उसपे कोई करवाई न करे ??? गजब कूटनीति है भाई अन्ना और उसके बन्दर टीम की ….संघ और भाजपा तो बाबा -अन्ना दोनों को चिल्ला चिल्ला को समर्थन दे रही है , तो अकेले बाबा संघ पोषित कैसे , जबकि भाजपा का गुणगान तो अन्ना ने ही किया था ( नितीश / मोदी ) …. बाबा करे तो राजनितिक , वही अन्ना करें तो सेकुलर ???अन्ना टीम की अफवाहें ये दोगली कूटनीति पे आधारित क्यों ????यदि बाबा के संग उमा भारती बैठी ती तो अन्ना भी तो अग्निवेश से इलू इलू कर रहे थे .. ”
बाबा ने तो लाठी खायी, सहा , और तुम्हारे टीम ने मार पिटाई कर ली नागपुर में , तो जो तुम्हारी बात नहीं मानेगा उसकी नाक कान काट लोगे ???
फिर क्या था, दोनों में गुल्ली डंडा का खेल शुरू है, कभी माया, मोह को पदाति है कभी मोह, माया को , और योगी सरकार चुपचाप जनता के साथ वालमार्ट का मन्त्र पढ़ रही है ..
कमल २ दिसम्बर २०११