मोहब्बत और गणित – विज्ञान

शीर्षकाविषय  एक दुसरे के विपरीत हैं,  कहाँ मोहब्बत और कहाँ गणित और विज्ञानं, कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली, लेकिन शायद ही किसी ने कभी ये जानने की कोशिश नहीं किया होगा की क्यों भोज और गंगू को ही चुना गया? क्या वास्तव में विपरीत थे? नहीं हो ही नहीं सकता, असमानता की तुलना कहीं न कहीं समानता होने पर की जा सकती है, नदी के दो पाट भी बिलकुल अलग होते हैं लेकिन दोनों ही नदी के किसी न किसी किनारे को दिशा देने में सहयोग करते हैं. निश्चित ही गंगू तेली के कोल्हू का तेल राजा भोज के रसोई में जाता होगा. गंगू बिचारा दिन भर मेहनत करता होगा, कोल्हू पेरता होगा, और उसके तेल की पकौड़िया भोज भी लपकते होंगे, तभी ये तुलना बनी होगी.
आज भी देखो पार्टी के कार्यकर्ता कितना मेहनत  करते हैं, माला फूल से ले के जनता को वोट देने तक “फूल” बनाने की तयारी बिचारे नेतान्मोंत चेला  करते हैं, और उन्मुक्त मजा लेता है विधायक, मंत्री.
शुरुवात के कई साल इस आशा में निकल जाते हैं की अबकी टिकट मिलेगा, तो सब कसर पूरी होगी, कौन जाने नेता जी अबकी हाई कमान से हमारी बात करें, लेकिन इनकी हालत प्रेमी सी हो जाती है जिसका फूल पहुचने वाला हरकारा खुद प्रेमिका उड़ा ;ले जाता है. तब भी चकोर माफिक ( चोर माफिक नहीं ) कभी न कभी गणित सेट  करने की  ताक में रहते हैं. मोहब्बत के गणित में अपने नेतावों को महारथ हासिल है.

कुछ दिन पहले ही गांधीवादी और नैतिकवादी  कोंग्रेस के नेता “कम” प्रोफ़ेसर  एक प्रतियोगी को बिना ज्युडिशियल परीक्षा के जज बनाने का गणित समझा रहे थे. हलाकि की  फार्मूला लगा नहीं, जज से पहले प्रोफ़ेसर ही फेल हो गए, नौकरी से ही निकाल्द इया गया. लेकिन बाद में गांधीवादी कोंग्रेसियो को समझ आया की इतने बड़े विद्वान को अपने से दूर रखना ठीक नहीं है, इन्ही जैसे प्रोफेसरों  के उच्च ज्ञान द्वारा निर्मित जज  हमें इन्हें बचाते आयें  हैं.  सो पुनः ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने वापिस बुला लिया है.

वैसे भी नौजवान (आजकल नैजवान होने का दायरा बढ़ के बुजुर्ग की बाउंड्री के सीमा रेखा तक पहुच गया है, सुना है अबकी बार वाली पञ्चवर्षीय योजना में नौजवानों की पदवी ५० उम्र तक भी की जा सकती है)  बालिकावों  को शोध का विषय मान  न जाने कितने गणित लगा देते हैं, तमाम फार्मूलों का आविष्कार कर डालते हैं, और कही जो डॉक्टरेट मिल गयी तो फिर खर्चे का गणित  लगाते है,  मजे की बात ये की इन फार्मूलो को आगे बढ़ाने की हिम्मत इलाहाबाद के  मेहता रिसर्च वाले भी नहीं करते, घबराते हैं. लेकिन वो गलत करते हैं, उन्हें इस दिशा में भी प्रयास  होना चाहिए, आखिर गणित का रास्ता भी दिल से होकर निकलता है या गणित करने के बाद दिल का रास्ता निकलता है , खैर जो भी हो, लब्बो लुवाब ये है की दोनों  अलग अलग नहीं है.

हरिशंकर परसाई ने अपने एक लेख में एक भ्रम के बारे में लिखा है, लेकिन मै उसको भ्रम नहीं बल्कि मोहब्बत का गणित मानता हूँ. अगला शाम को सूरज को एक टक  देखे जा रहा है, मै सोचता की  वो प्रकृति सौन्दर्य प्रेमी है, लेकिन सूरज डूबते है वो “लोटा” ले के बगल वाले नाले में कूद जाता  है, अर्थात सूरज उस समय तक वो मोहब्बत नहीं बल्कि नफरत कर रहा होता  है, एक तरफ पेट में इतना मरोड़, दूसरा मुआ सूरज की डूबता ही नहीं, जैसे डूबा वैसे सूरज को साधुवाद, उसकी स्थिति उस पुत्र सी होती है जिसका बाप बहुत रुपया जमा कर रखा है, लेकिन मरने में थोड़ी देरी  है.  उसका पूरा ध्यान “टाईमिंग”  का गणित लगाने में होता है की कब ये निपटे और का हमारे दिल में इनके लिए प्यार पैदा हो. क्या करे हम तो इनसे प्यार करना चाहते हैं, इनकी मुर्तिया लगवाना चाहते हैं, जिन्दगी भर इनके गुण गाना चाहते हैं, लेकिन ये हैं की मौका ही नहीं देते, तो इसमें हमारा क्या कुसूर. इनको निपटने दीजिये देखिये हम इनका कितना आदर सत्कार करते है, इनकी याद में जश्न मनाएंगे, तेरह दिन बाद भोज रखवायेंगे, इनके जाने के बाद ये खुद भी हमें ये सब करने से नहीं रोक सकते, हम पूरी आजादी के साथ इनको इज्जत देंगे. हलाकि बचपन में मै सोचा करता था की जिसके घर के लोग मर जाते हैं वो इतनी धूम धाम से क्रिया कलाप कैसे कर लेते हैं. अब पता चला की ये ख़ुशी के क्षण होते है जब एक धनि बाप का पुत्र  बिना रोक टोक के धन का उपयोग अपनी मर्जी से कर  सकता है.
बायल के नियम से चले तो तो पुत्र का प्यार पिता के जीवन के व्युत्क्रमानुपाती होता है और चार्ल्स के नियम से पुत्र का प्यार उसके “निपटने” के समानुपाती होता है.
प्रेमी का प्यार प्रेमिका के भाई के व्युत्क्रमानुपाती होता है और उसकी सहेली के समानुपाती होता है. प्रोफेशनल मोहब्बत आर्कीमिडिज के सिध्धांत का पालन  करती है, प्रेमिका का प्यार प्रेमी द्वारा दिए गए गिफ्ट के बराबर होता है.

किसी बड़े और मंझे हुए मोहब्बतबाज ने कहा है “प्यार चन्द्रमा के समान होता है, या तो घटता है या बढ़ता है, स्थिर नहीं हो सकता.  यहाँ भी गणित बता जोड़ -घटना लगा गया और  मोहब्ब्तान्मुख युवा इसी परिभाषा को गले के निचे उतार दिल से लगा लेता है, कभी ढेर सारा प्यार बढाता है और और कभी ढेर सारा प्यार मिलके उसका स्वास्थ्य गिराता है.

अल्फ्रेल्ड नोबेल जो एक जुझारु  वैज्ञानिक के  साथ साथ जुझारू मोहब्बतबाज भी थे, संसार भर में दिया जाने वाला  नोबेल पुरस्कार के प्रणेता एक गणितज्ञ से दुखी हो पुरस्कार से  गणित विषय को ही हटा दिया.

अल्फ्रेड का एक सहयोगी था “गोस्टा मिटाग लेफ्लर”.  शायद गणित का मोहब्बत में व्यवहारिक उपयोग की शुरुवात इसी ने की. नोबेल अपने काम धाम में व्यस्त रहते, और मिटाग मोहब्ब्तानुभाव  अपने फार्मूलो से  नोबेल के प्रेयसी को हल करने में लगे रहते, फार्मूला काम करते ही नोबेल के दिली विज्ञान को मिटाग के प्रमेय का नाम दिया गया. जिससे अल्फ्रेड दुखी हो गणितज्ञों  को “नोबेल” न मिलने का श्राप दे डाला.
आज के  परिपेक्ष्य में भी गणित और मोहब्बत का चोली दामन का साथ है, गुजरात के  लोकप्रिय नेता ने एक  की प्रेमिका को ५० करोड़ का कहा तो अगला बुरा मान गया, तीन चरणों से रिफाइन हो के आया मोहब्बत सिर्फ  पचास करोड़ का ? नहीं ये अन्याय है. अरे नेता जी आपको नहीं पता तीन चरणों से रिफाइन होने के बाद मोहब्बत परिष्कृत हो जाती है, मिलावटीपन  के इस ज़माने में इतनी शुध्द कोई है तो उसे पचास करोड़ का कह अपमान न करे, कृपया शुध्धता के कीमत को पहचाने. क्योकि इस प्रकार के  नेतावो को राजनितिक शुध्धता से जादा उनका शुध्द अनमोल “परिष्कृत”  मोहब्बत प्यारा है.

सादर

कमल कुमार सिंह
३ नवंबर २०१२

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