एसा नहीं है २००२ से पहले या बाद में कोई दंगे नहीं हुए, कब हुए, कितने हुए, कहाँ हुए, किसके सरकार में हुए ये सब नहीं लिखूंगा, सभी जानते है. लेकिन २००२ के दंगो को ही निशाना जादा बनाया जाता रहा है. साथ उसको “स्टेट स्पोंसर्ड” का दर्जा राजनीतिज्ञों द्वारा बताया जाना इस बात का सबुत है की उन्हें अपनी करनी पे विश्वाश नहीं बल्कि दंगो का की राजनीति का ही सहारा है , नहीं तो “स्टेट स्पोंसर्ड” दंगा क्या होता है ?? क्या बाकी के दंगे सहमती से गोलमेज मीटिंग टाइप के बाद हुए है ? ख़ासकर उस केस में जब तक किसी भी कोर्ट ने मोदी पे कोई टिप्पड़ी भी न की हो. असंम में कोंग्रेसियों (कोंग्रेस – आई ) द्वारा बांगला देशियों का बसाया जाना फिर दंगा होना क्या एक सुनियोजित “स्टेट स्पोंसर्ड” दंगा नहीं है ? ये वही पार्टियाँ हैं जो पीछे से दंगे करा के फिर आगे इन्साफ मांगती है खासकर मुस्लिमो के लिए.
असली बात वोट बैंक है, सभी जानते हैं. आज जबकि मोदी किसी भी पार्टी के किसी भी नेता से जादा लोकप्रियता लिए हुए हिन्दू मुस्लिम किये बिना चुनाव जीतते है, तो बाकी पार्टी के राजनितिज्ञो का तिलमिलाना समझ में आता है. मोदी को का भुत उन्हें जगाने सोने नहीं देता, एसा लगता है जैसे दंगो ने उनके राजीनीति को भी खा लिया है. उन्हें लगता है २००२ का दंगा उनके जितने की रेसिपी है हलाकि वो मुगालते में हैं जबकि वही मोदी तीसरी पारी खेल चुके हैं. और २००२ के बाद जहाँ कोई दंगा नहीं हुआ तो दूसरी तरफ पुरे देश में न जाने कितने दंगे हुए तो फिर मुसलमान मोदी से क्यों भड़कते हैं ??
राजनीतिज्ञों का मोदी से भडकना समझ आता है, जलन कह लीजिये या दुर्भावना या राजनैतिक प्रतिद्वंदता जो भी दूसरी पार्टियो का भडकना समझ में आता है, लेकिन साथ साथ ही मुस्लिमो मोदी का नाम से भडकना बड़ा गोल गोल घुमाता है, क्या मोदी मुसलमान विरोधी है ? यदि एसा है तो गुजरात में कैसे जीतते ? या मान लीजिये मोदी देश के प्रधान मंत्री बन जाते है तो क्या देश से मुसलमानों का खात्मा कर देंगे ? तब ये सोचना चाहिए की क्या गुजरात में मुसलमान खतम हो गए ? बड़ी हास्यपद बात है, तो फिर मुसलमान मोदी से क्यों भड़कते हैं ??
अब आईये दुसरे पहलू पे सोंचे, आज तक मैंने किसी नेता को नहीं देखा जो अपने भाषणों में मुसलमानों की पैरवी न करते देखा गया हो, चाहे हो लालू का परिवर्तन रैली हो, या टोपीबाज नितीश की रैली, या मुलायम की “उत्तर प्रदेश के मुस्लिम को लडकियों वजीफा देना हो, अरविन्द केजरीवाल का बुखारी वंदन हो (वो बात अलग है भगा दिए गए थे वहां से ) या अन्य कोई नेता, उनका पलड़ा एक तरफ इस मुसलमान “वोट बैंक” कि तरफ झुका होता है, पलड़ा कभी बराबर होते नहीं देखा गया. नहीं तो क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के अतिरिक्त और कोई लड़की उस योग्य नहीं है जिसको सहायता की दरकार है ? वही कोंग्रेस के भारत विकास में एक मुस्लिम लड़की को एड में दिखाना क्या दिखता है ?
ठीक इसके उलट मोदी के भाषणों में आजतक किसी ने हिन्दू मुसलमान की बात नहीं सुनी होगी. उन्होंने हमेशा बराबरी की बात की, गुजरात मे हो तो ६ करोड़ गुजरात और यदि देश में हो तो भारतीय कह के संबोधित करने वाले मोदी शायद यहीं चुक कर गए, उन्हें बराबरी और समानता की बात न करके बल्कि मनमोहन सिंह की तरह “देश में पहला हक़ अल्पसंख्यको का है” टाइप का कोई जुमला बोलते तो शायद मुसलमान उने कभी नहीं भड़कता, क्योकि दंगे तो और भी कई कोंग्रसी नेतावो ने करवाए हैं, सो दंगा उनके लिए ख़ास मुद्दा नहीं है क्योकि वो भी जानते हैं की वाजिब से ऊपर किस आशा रखना उनकी आदत बन चुकी है, मिले न मिले वो बात अलग है. असली मुद्दा मोदी विरोध का है उनका “कान”, जो नेतावो से ” मुस्लिम मुस्लिम” सुनने का आदि हो चूका है , अभ्यस्त हो चूका है, एसे में मोदी यदि “मेरे प्यारे भारतीय भाईयों और बहनों” टाइप का एक सामानता की बात करेंगे तो निश्चित और लाजिमी है मुसलमानों का मोदी से भडकना.