नेता या नंगा

हमारे समाज ने हमें एक हमाम दिया है जिसमे सब नंगे होते है, ज्ञान चतुर्वेदी जी के भाषा में कहें तो नंगा होना बहुत जरुरी है इसीलिए हमाम का निर्माण हुआ.

लेकिन नेता अपवाद है, वो कहीं भी नंगे या नंगेपन पे उतारू हो सकते हैं, समय पर नंगे होते है, नंगापन दो प्रकार का होता है श-शरीर और दूसरा आध्यात्मिक, मसलन जिसतरह से “उत्तर” प्रदेश या कश्मीर के नेता अपने कपडे को बेटी की तरह बोझ मान कर अपने शरीर से अलविदा कर देते हैं वो श -शरीर नंगई है. और दूसरा मिडियानन्दन, सेकुलरदुलारे “केजरीवाल जी” के जूठ को सोशल मिडिया द्वारा प्याज के छिलके की तरह उतारना, वो अध्यात्मिक कटेगरी का नंगई है, हालाकि की ये आध्यात्मिक सुख स्यवं केजरीवाल भी नहीं लेना चाहते फिर भी पब्लिक उन्हें ये सुख देने पे उतारू है. हाँ हलाकि कुछ दिन पहले जिस प्रकार के धरना प्रदर्शन सहित छोटे बच्चों सी नगई करी वो उनकी इक्छा के मनमाफिक था.

ये नंगा क्यों है ये तो नेता ही जाने या नंगे जाने या नंगे नेता जाने, नेता नंगे जाने हलाकि नेता और नंगा में आप चाहे तो कोई फर्क न करे, हमें कोई आपत्ति नहीं होगी.

एक अच्छा खासा इंसान पहले तो न जाने क्यों नेता बनता है अथवा नंगा बनाने की और अग्रसर होता है, क्या मिलता है नंगा बनने में ?? माल पूवा?? नहीं, वो सेवा करना चाहता है,सर्वोत्तम सेवा, भयंकर सेवा, विकट सेवा, वो सेवा करने की पिछले सभी वर्जनाओं को तोड़ना चाहता है. वो देश को एक नया नेतृत्व देना चाहता है.

दुनिया भर के तिकड़मों को क्या वो खुद के लिए करता है ? किसे अच्छा लगता है किसी के तलवे चाटना ? किसी की दलाली करनी? अपने सीनियर सेवामय नेता के जूते उठाना, जूठे चबाना ? आपको क्या लगता है वो अपने लिए करता है ? यदि आप ऐसा सोचते है तो आपसे जादा कृतघ्न पुरे इस धरा पर नहीं. वो करता है तो बस आपके लिए, वो पूरा जीवन ही बस जनता की सेवा के लिए बना होता है, उसको ब्रम्हा जी ब्लैक में स्पेशल कोटे से सेवा करने का लाईसेंस के साथ साथ उसके हाँथ में सेवा का घनघोर रेखा खींच कर पृथ्वी पे भेजते है.

अब इतनी मशक्कत के साथ पृथ्वी पे आने के बाद इस निरीह प्राणी के पास कोई रास्ता नहीं बचता सिवाय की वो जनता की सेवा करे. क्या आपने कभी इस बात पे ध्यान दिया की जब वह नेहरूटोपी लगा (जिस टोपी को वो गांधी का हर्फ़ दे के पहनते है उन्हें ये वही जानकार नेता है जिन्हें नहीं की गांधी ने आज तक कभी टोपी पहनी ही नहीं सिवाय एक बार के जब वो साउथ अफ्रीका में कुछ दिनों के कैदी थे) हाथ जोड़ आपके समक्ष कहता है की वो राजनीति करने नहीं बल्कि बदलने आया है, वो आप जैसा ही है, तो आप बस समझ लेते की यही है हमारे तारण हार, और समझना बुरा भी नहीं है, अब आप जैसे लोग नहीं समझेंगे तो उसके सेवा करने का कोटा अधुरा रह जायेगा. और मरते समय उसकी आत्मा सेवा पुन्य से वंचित हो तड़पती रहेगी.

वह जनता की सेवा करने का कोई भी अवसर नहीं चूकना चाहता, चाहे जो करना पड़े, क्या आपके लिए अपने सगे ने कभी किसी की हत्या की है ? बाल्तकार किया है ? लूट की है ? उत्पात मचाया है ?? नहीं न, आपके अपने और आप खुद जिसे जघन्य मानते वह ये नेता, बस आपके लिए कुछ भी करने पे उतारू रहता है, वह आपकी सेवा में किसी भी हद तक जा सकता है. लात मार सकता, लात खा सकता है, पारस्परिक रूप से गालीयों का आदान प्रदान भी कर सकता है या करता है, सामने वाले सेवक को निपटा खुद पूरा भार वो अपने सर मढना चाहता है तो किसके लिए ?? बस जनता के लिए.

ये सेवा भाव का ही असर है की वह दारु खरीदता है, बांटता है, पकडे जाने पे विरोधी की शाजिश कहता है ? क्यों करता है वो इतना तिकड़म ? किसके लिए ? सिर्फ और सिर्फ “आप” के लिए, आप की सेवा के लिए, वो “सेवा सेवा चिल्लाता है कपडा फाड़ के” इतना तो मजनू लैला लैला भी नहीं करता था .
जनता का क्या वो तो कुछ भी बोलती है, वो एहसानफरोश होती है, कोई कितनी भी सेवा कर ले लेकिन उसे नेता सुहाता ही नहीं, वो बात अलग है की वो नेतावों से सेवा लेने पे मजबूर है, विकट सेवा, भयंकर सेवा, अथाह सेवा, अनंत सेवा, नंगी सेवा, मक्कार सेवा, करेगा तो “आप” की ही सेवा.

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